खाटूश्याम कौन है: खाटू श्याम का इतिहास क्या है?

खाटूश्याम कौन है: आज हम जानेंगे कि खाटूश्याम कौन है,बर्बरीक से कैसे पड़ा खाटू श्याम नाम और इनका इतिहास क्या है? इनका मंदिर कहाँ पर स्थित है व  इनका महाभारत से क्या संबंध है |श्री खाटूश्याम जी का मंदिर राजस्थान में  सीकर जिले के खाटू नगर मे स्थित है इसी जगह की वजह से इन्हे खाटू नरेश भी कहते है |

खाटूश्याम, हिंदू धर्म के इस समय सबसे लोकप्रिय देवता हैं। इन्हे भगवान कृष्ण का कलयुग में अवतार माना जाता हैं। इन्होंने घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के रूप में जन्म लिया था। महाभारत के युद्ध में, बर्बरीक ने तीन अमोघ बाण प्राप्त किए थे। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें कलयुग में श्याम नाम से पूजित होने का वरदान दिया।

 खाटूश्याम कौन है ?

स्कन्द पुराण के अनुसार खाटू श्याम जी महावली भीम और हिडिंबा के पौत्र है इनके पिता का नाम घटोत्कच तथा माता का नाम मोरवी है। माता मोरवी ने तीन पुत्रों को जन्म दिया जिसमे सबसे बड़े पुत्र का नाम बर्बरीक तथा अन्य दोनों का नाम क्रमश: अंजनपर्व और मेघवर्ण था।

बर्बरीक जब छोटे थे तब इनके बाल बब्बर शेर की तरह थे जिसके कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया। यह माता मौरवी के प्रिय व आज्ञाकारी पुत्र थे बचपन की शिक्षा बर्बरीक ने अपनी माता मौरवी से ही ली थी। खाटू श्याम जी बाल अवस्था से बहुत बलशाली और वीर थे उन्होंने युद्ध कला अपनी माता मोरवी  तथा  भगवान् कृष्ण से सीखी।

खाटूश्याम का इतिहास क्या है ?

बात  उस समय की है जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध शुरू होने जा रहा था और बड़े-बड़े योद्धा रणभूमि मे युद्ध करने के लिए पहुच रहे थे। जब बर्बरीक को इस युद्ध के बारे मे पता चला तो उसने अपनी माँ मौरवी से युद्ध देखने और युद्ध में शामिल होने की इच्छा बताई।

तब माँ मौरवी ने उन्हे युद्ध देखने की आज्ञा तो दे दी  मगर बर्बरीक से एक प्रण लिया की तुम युद्ध मे हारने वाले पक्ष की तरफ से ही युद्ध लड़ोगे और उनका सहारा बनोगे। बर्बरीक ने अपनी माँ से आशीर्वाद लिया और रणभूमि के लिए चल दिए।

श्रीकृष्ण को जब यह पता चला की बर्बरीक रणभूमि की तरफ अपने नीले घोड़े पर सवार होकर आ रहा रहे है तब उन्हे इस बात की चिंता होने लागि की अगर कहीं बर्बरीक युद्ध मे शामिल हुआ तो युद्ध का शायद वो अंत ना हो जो वो चाहते है इसलिए श्रीकृष्ण भगवान एक साधु का वेश धरण करके  उन्हे रास्ते मे रोककर उनकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया।

जब बर्बरीक अपने घोड़े पर सवार होकर रणभूमि की तरफ जा रहे थे तो वह रास्ता भूल गए और उन्हे  वहाँ एक साधु महात्मा दिखाई दिए बर्बरीक ने अपना घोड़ा  रोककर उन साधु महात्मा को प्रणाम किया और करुक्षेत्र का रास्ता पूंछा तब साधु महात्मा ने उनसे पूँछा की है! बालक आप कौन है आप कुरुक्षेत्र का पता क्यों पूंछ रहे है क्योंकि वहाँ तो युद्ध होने जा रहा और वहाँ एक से बड़कर एक योद्धा युद्ध मे शामिल होने आ रहे है है आप वहाँ मत जाओ क्योंकि वह रणभूमि आपके लिए नहीं है।

तब बर्बरीक ने साधु महात्मा को अपना परिचय दिया और अपनी माँ को दिए वचन और अपनी शक्तियों के बारे मे बताया, बर्बरीक ने बताया के उनके पास ऐसे तीन बाढ़ है जिनसे वह पूरा युद्ध पल भर मे ही समाप्त कर सकते है मगर वह युद्ध मे हारने वाले पक्ष की तरफ से ही युद्ध मे शामिल होंगे क्योंकि उनन्होंने अपनी माँ को वचन दिया है ।

यह बात सुनकर साधु महात्मा ने उनसे हँसते हुए पूछा की इस युद्ध मे विश्व के एक से बड़कर एक योद्धा शामिल है और तुम कह रहे हो की तुम इन तीन वाणों से युद्ध को समाप्त कर दोगे, तुम्हारी ये बातें सुनकर एक तो मुझे हंसी आ रही है और इस बचकानी सोच पर तरस भी आ रहा है मुझे इस बात का प्रमाण चाहिए की जो तुम कह रहे हो कह रहे हो वह सही है

तत्पश्चात बर्बरीक ने शाधु महात्मा को प्रणाम करते हुए उनसे कहा की मैं अपने इस एक बाण से इस पीपल के सारे पत्ते भेदकर दिखाऊँगा और बर्बरीक ने वह तीर उस पेड़ की तरफ छोड़ दिया।

साधु रूपी भगवान श्रीकृष्ण उस बाण की शक्ति को जानते थे इसलिए उन्होंने पीपल का एक पत्ता तोड़कर अपने पैर के नीचे छुपा लिया और जब बाड़ पीपल के सारे पत्ते भेदकर श्रीकृष्ण के पैर के पास आकर रुक गया तब बर्बरीक ने उनसे कहा की हे साधु महात्मा अपने पैर को हटाइए नहीं तो ये बाड़ आपके पैर को भी भेद देगा ।

तब साधु रूपी श्रीकृष्ण बर्बरीक से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हे आशीर्वाद देकर उनसे कहा की मैं आपकी वीरता से बहुत प्रशन्न् हूँ और आपसे एक दान की अपेक्षा और करता हूँ  बर्बरीक ने साधु महात्मा को वचन दिया की वह जो भी चाहे दान मे मांग सकते है

तत्पश्चात साधुरूपी श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान देने के लिए कहा , यह बात सुनकर बर्बरीक थोड़ा सा  अचंभित हुए लेकिन बिना कुछ भी सोचे विचारे बरबरीक ने अपना शीश का दान श्रीकृष्ण को दे दिया।

लेकिन बर्बरीक ये जानते थे की ये कोई साधारण साधु नहीं है क्योंकि कोई भी साधु महात्मा किसी भी वीर से उसका शीश का दान नहीं मांग सकता है अरथार्थ उन्होंने साधु महात्मा से आग्रह किया की वह अपने असली रूप में उन्हे दर्शन दे।  तब श्रीकृष्ण ने उन्हे अपने असली रूप के दर्शन दिए और शीश का दान लेने का कारण भी बताया की इस युद्ध भूभि के लिए किसी  क्षत्रीय की बली चाहिए थी इसलिए उन्हे बर्बरीक से शीश का दान लेना पड़ा।

श्री कृष्ण ने बर्बरीक से बहुत प्रसन्न होकर उनसे उनकी आखरी इच्छा पूंछी तब बर्बरीक ने कहा की प्रभु मे महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहता हूँ। तब भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का आह्वान किया और उनसे आग्रह किया की देवी बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचकर शीश को अमर होने का वरदान दिया जाये।

इसके तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने उस शीश को एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किया और कहा कि ” कलयुग मे तुम्हें ये संसार मेरे श्याम नाम से पुजेगा और कलयुग में जो भी मनुष्य तुम्हारी वंदना करेगा तुम उन लोगों का कल्याण करोगे। “

खाटूश्याम कौन है और खाटूश्याम का इतिहास क्या है ?

खाटूश्याम मन्दिर कहाँ पर है

श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले के गाँव खाटू में स्थित है। यहाँ पर हर साल फाल्गुन के महीने में मेला लगता है जिसमें देश-विदेश से श्याम बाबा के भक्त दर्शन करने आते है और बाबा श्याम के मंदिर मे निशान चढ़ाते है

🔴 दिल्ली में खाटू श्याम मंदिर कहां पर है?

खाटूश्याम जी का असली नाम क्या है

श्री खाटू श्याम जी  पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे।

महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक का सिर खाटू गांव में दफनाया गया था इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक बार एक गांव में एक गाय अपने स्तनों से इस जगह पर दूध बहा रही थी, जब लोगों ने देखा तो आश्चर्य किया।

जब इस जगह को खोदा गया, तो बर्बरीक का कटा हुआ सिर मिला। इस सिर को एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया। वह उसकी रोज पूजा करने लगा।

एक दिन खाटू नगर के राजा रूपसिंह को स्वप्न में मंदिर का निर्माण कर बर्बरीक का सिर मंदिर में स्थपित करने के लिए कहा गया। कार्तिक महीने की एकादशी को बर्बरीक का शीश मंदिर में सुशोभित किया गया, तभी से यह मंदिर खाटू श्याम के  नाम से प्रषिद्ध

बर्बरीक का धड़ कहाँ है ?

वैसे तो कई मत है बर्बरीक के धड़ के संबंध मे, मगर दो साल पहले जब लॉकडाउन  लगा था तब खाटू श्याम का मंदिर बंद था उस समय मुझे चुलकाना धाम के बारे में पता चला था की श्री खाटू श्याम का शीश चुलकाना धाम में विराजमान है तब मुझे वहाँ जाने का मौका मिला और वहाँ मैंने श्री श्याम के धड़ के साक्षात दर्शन किए और वहाँ के मुख्य पूजारी श्री देवेन्द्र जी से भी मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ।

चुलकाना धाम हरियाणा राज्य मे पानीपत जिले के समालखा कस्बे से लगभग 6 से 7 किलोमीटर दूर स्थित है यहाँ पर पीपल का पेड़ आज भी उपस्थित है और इस पेड़ पर आज भी पत्तों मे छेद पाएं जाते है और यह बड़ी मनमोहक है जगह है

श्याम बाबा का निशान क्यों चढ़ाया जाता है ?

सनातन धर्म व संस्कृति में ध्वजा विजय की प्रतीक मानी जाती है। श्याम बाबा द्वारा किए गए महा बलिदान शीश दान के लिए उन्हें निशान चढ़ाया जाता है। यह उनकी विजय का प्रतीक माना जाता है क्योंकि उन्होंने धर्म की जीत के लिए दान में अपना शीश ही भगवान श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था।

निशान केसरी, नीला, सफेद, लाल रंग का झंडा होता है। इन निशानों पर श्याम बाबा और भगवान कृष्ण के फोटो लगे होते है। कुछ निशानों पर नारियल और मोरपंखी भी सजी होती है। श्रद्धालु नंगे पैर रिंगस से खाटू मंदिर तक निशान लेकर बाबा श्याम पर चड़ाने जाते है और अपनी मनोकामना को मांगते है ।

खाटूश्याम जी के दर्शन और आरती का समय ?

अगर आप अभी खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए जाने की सोच  रहे हैं तो आपको मंदिर में दर्शन करने का समय जरूर मालूम होना चाहिए। क्योंकि यहां गर्मियों में और सर्दियों में दर्शन का समय अलग-अलग होता है।

गर्मियों में मंदिर सुबह 4:30 बजे से दोपहर 12:30 तक भक्तों के लिए दर्शन के लिए खुला रहता है। वहीं शाम को 5 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन होते हैं। जबकि सर्दियों में मंदिर के पट सुबह 5:30 बजे से दोपहर 1 बजे तक खुले रहते हैं और शाम को 5 बजे से रात 9 बजे तक मंदिर खुला रहता है।

वहीं आरती की बात करें तो गर्मियों में मंगल आरती सुबह 4:45 पर होती है, जबकि सर्दियों में आरती का समय बदलकर 5:45 कर दिया जाता है। गर्मियों में भगवान खाटू श्याम का श्रृंगार सुबह 7 बजे होता है तो सर्दियों में सुबह 8 बजे इनका श्रृंगार किया जाता है। गर्मियों में भोग आरती का समय दोपहर 12:15 रखा गया है जबकि सर्दियों में भोग आरती 12:30 पर हो जाती है। गर्मियों में सांध्य आरती शाम 7:30 बजे तो सर्दियों में आरती 6 बजे हो जाती है। गर्मियों में पट बंद होने के दौरान होने वाली शयन आरती रात 10 बजे होती है, जबकि सर्दी के दिनों में पट 9 बजे बंद कर दिए जाते हैं।

🔴 Khatu Shyam Darshan Time 2023

बर्बरीक से कैसे पड़ा खाटू श्याम नाम

बर्बरीक के धड़ के विषय मे महाभारत युद्ध के बाद कोई विशेष उल्लेख कहीं नहीं मिलता है इसलिए ये कहना कठिन है की बर्बरीक  का धड़ राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव मे कैसे पहुँचा।

श्री खाटूश्याम का शीश के बारे मे कहा जाता है की  एक बार एक गांव में एक गाय अपने स्तनों से इस जगह पर दूध बहा रही थी, जब लोगों ने देखा तो आश्चर्य किया। जब इस जगह को खोदा गया, तो बर्बरीक का कटा हुआ सिर मिला। इस सिर को एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया। वह उसकी रोज पूजा करने लगा। एक दिन खाटू नगर के राजा रूपसिंह को स्वप्न में मंदिर का निर्माण कर बर्बरीक का सिर मंदिर में स्थपित करने के लिए कहा गया। कार्तिक महीने की एकादशी को बर्बरीक का शीश मंदिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाने लगा, तब से यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया।

खाटूश्याम जी के श्यामकुंड में नहाने का महत्व

खाटू श्याम जी के मंदिर के पास पवित्र तालाब है जिसका नाम है श्यामकुंड। इस कुंड में नहान का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से मनुष्य के सभी रोग ठीक हो जाते हैं और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। खासतौर से वार्षिक फाल्गुन मेले के दौरान यहां डुबकी लगाने की बहुत मान्यता है।

नमस्ते! मेरा नाम नागेंद्र सिंह है और मैं एक ब्लॉगर हूँ। मैंने अपनी फाइनल एजुकेशन एमए शिक्षाशात्र विषय से कानपुर यूनिवर्सिटी से कम्पलीट की है, और मैं पिछले दो साल से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। ब्लॉगिंग मेरे लिए एक मज़ेदार और आंखें खोल देने वाला अनुभव था। जब लोगों ने मेरे पहले ब्लॉग पोस्ट पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, तो मुझे ब्लॉगिंग जारी रखने की प्रेरणा मिली। मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से अपना ज्ञान, अनुभव और विचार दूसरों के साथ साझा करना चाहता हूं।

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